
सुल्तानगंज/भागलपुर: श्रावण मास की आस्था और भक्ति से सराबोर बाबा धाम यात्रा इस बार सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक बन गई है। सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ घाट से प्रतिदिन लाखों कांवड़िए गंगाजल लेकर देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए रवाना हो रहे हैं। इस विशाल जनसैलाब में भाषा और प्रांत के सारे भेद भूलकर श्रद्धालु ‘बोल बम’ के नारों में एक स्वर में गूंज रहे हैं।
हाल ही में महाराष्ट्र में हिंदी भाषी लोगों को लेकर कथित विवाद और दुर्व्यवहार की खबरों के बीच यहां मौजूद महाराष्ट्र से आए कांवड़ियों ने इन घटनाओं को ‘राजनीतिक स्टंट’ करार दिया है। उनका साफ कहना है कि “महाराष्ट्र में ज़मीनी स्तर पर कोई भाषा विवाद नहीं है, यह सब आगामी महानगरपालिका चुनावों को ध्यान में रखकर फैलाया जा रहा है।”
‘हम सब साथ हैं, यही है असली भारत’
महाराष्ट्र से आए श्रद्धालुओं ने कहा कि “हम मराठी हैं और हमारे साथ बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के कांवड़िए मिलकर बाबा की जय-जयकार कर रहे हैं। यहां किसी को यह फर्क नहीं पड़ता कि कौन किस भाषा में बात कर रहा है।”
एक श्रद्धालु ने कहा, “यहां श्रद्धा बोलती है, राजनीति नहीं। बाबा की भक्ति ने सबको एक डोर में बांध रखा है।”
‘हिंदी राष्ट्रभाषा है, सभी भाषाएं हमारी धरोहर’
महाराष्ट्र में स्वास्थ्य सेवा से जुड़े और मूल रूप से बिहार के रहने वाले डॉ. मृणाल शेखर ने कहा, “भाषा विवाद केवल एक राजनीतिक हथकंडा है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, जो पूरे देश को जोड़ती है। मराठी हो या भोजपुरी – सभी भाषाएं हमारी सांस्कृतिक पहचान हैं, और इनका सम्मान किया जाना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि “जब देश श्रद्धा और एकता के मार्ग पर बढ़ रहा है, तब भाषा को लेकर विवाद खड़ा करना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकारों और नेताओं को जोड़ने की राजनीति करनी चाहिए, तोड़ने की नहीं।”
बाबा की राह में कोई भेदभाव नहीं
गंगा घाट से लेकर बाबा धाम तक, यात्रा मार्ग पर देखा गया कि मराठी और बिहारी कांवड़िए एक-दूसरे का हाथ थामे हुए ‘बोल बम’ के नारे लगाते आगे बढ़ रहे हैं। कहीं से कोई भाषा, जाति या क्षेत्र का भेदभाव देखने को नहीं मिला। यह दृश्य उस भारत की तस्वीर पेश करता है जहां धर्म और आस्था के मार्ग पर भाषा की दीवारें खुद-ब-खुद टूट जाती हैं।