
नई दिल्ली/भागलपुर: बिहार में चल रही वोटर वेरिफिकेशन (SIR – Special Summary Revision) प्रक्रिया को रोकने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने फिलहाल इस प्रक्रिया पर कोई रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जिससे यह प्रक्रिया अब राज्य भर में पूर्ववत जारी रहेगी।
कोर्ट का रुख:
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान की पुष्टि के लिए आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज वैध माने जाएंगे। हालांकि, यह चुनाव आयोग के विवेक पर निर्भर करेगा कि वह किस दस्तावेज को स्वीकार करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि:
- यदि चुनाव आयोग किसी दस्तावेज को अमान्य मानता है, तो उसे कारण स्पष्ट रूप से दर्ज करना होगा।
- आयोग द्वारा प्रस्तुत 11 वैध दस्तावेजों की सूची को अंतिम नहीं माना जा सकता।
- आधार कानून के तहत अन्य दस्तावेजों को भी मान्यता दी जा सकती है।
मामले की अगली सुनवाई अब 28 जुलाई 2025 को होगी।
राजनीतिक बयानबाजी तेज: अजीत शर्मा का तीखा हमला
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, भागलपुर के कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा ने चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा:
“अगर चुनाव आयोग को यह प्रक्रिया करनी ही थी, तो यह लोकसभा चुनाव से पहले की जानी चाहिए थी। अब जबकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, यह पूरा अभियान आम जनता के वोट को खत्म करने की साजिश जैसा लगता है।”
“चुनाव आयोग का यह रवैया जनता के साथ सीधा अन्याय है। जो भी वोटर अपने दस्तावेज अपडेट नहीं करा पाएंगे, उनके वोट कटने का खतरा है।”
अजीत शर्मा ने यह भी मांग की कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित करे, ताकि किसी भी योग्य मतदाता को उनके मताधिकार से वंचित न किया जाए।
पृष्ठभूमि क्या है?
बिहार में हाल ही में मतदाता सूचियों की विशेष समीक्षा के तहत वोटर वेरिफिकेशन अभियान चलाया जा रहा है, जिसे लेकर कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने मतदाताओं के अधिकारों पर संकट का आरोप लगाया था। कुछ याचिकाकर्ताओं ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर आज यह फैसला आया।