
Sultanganj: सावन के पावन महीने में बाबा बैद्यनाथ धाम की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं का कारवां इस बार एक अनोखी आस्था की मिसाल बन गया है। जहाँ एक ओर लाखों कांवड़िए 105 किलोमीटर की कठिन यात्रा तय कर रहे हैं, वहीं कुछ हठयोगी शिवभक्त ऐसे भी हैं, जिनकी भक्ति ने अंधकार को भी उजाला बना दिया है।
इन हठयोगियों ने आंखों पर पट्टी बांधकर भगवान शिव से मिलने की यात्रा शुरू की है। न उन्हें रास्ता दिखाई देता है, न मंज़िल—but भक्ति और विश्वास के सहारे वे चल पड़े हैं, अपने भोलेनाथ की शरण में। कोई अपनी मन्नत पूरी होने पर यह कठिन व्रत निभा रहा है, तो कोई अपनी पीड़ा, अपनी प्रार्थना लेकर बाबा के दरबार में अर्जी लगाने निकला है।
इन श्रद्धालुओं की एक ही पुकार है:
“भोले बाबा अंतर्यामी हैं, उन्हें न दिखावा चाहिए, न दृष्टि—they know what’s in our hearts.”
बिहार के विभिन्न जिलों से आए इन भक्तों की हठयोग साधना, अडिग आस्था और अलौकिक आत्मविश्वास श्रद्धालु समाज को यह सिखा रहा है कि भक्ति का रास्ता शरीर की सीमाओं से नहीं, मन की गहराइयों से तय होता है।
🙏 एक श्रद्धालु की भावुक आवाज़:
“मैंने मन्नत मांगी थी, मेरी बेटी ठीक हो गई। इसलिए आंखों पर पट्टी बांधकर बाबा से मिलने जा रहा हूं। भोलेनाथ सब जानते हैं—सच्चे मन से पुकारो, तो वे जरूर सुनते हैं।”
इन भक्तों के कदमों में थकान नहीं, मन में अटूट विश्वास है। यह यात्रा महज़ शरीर की नहीं, यह एक आध्यात्मिक संवाद है आत्मा और शिव के बीच—जहाँ आंखें बंद हैं लेकिन मन पूरी तरह जागृत।
इन हठयोगियों को देखकर एक ही बात मन में आती है—भक्ति न कोई ज़ुबान मांगती है, न आंखें, बस समर्पण चाहिए। और जब समर्पण सच्चा हो, तो भोलेनाथ बिना बुलाए भी अपने भक्तों को गले लगा लेते हैं।