
नई दिल्ली: हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर के संरक्षण का प्रतीक बनकर आता है। यह दिन 1905 के स्वदेशी आंदोलन की याद दिलाता है, जब हाथ से बुना कपड़ा केवल वस्त्र नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, प्रतिरोध और सांस्कृतिक पहचान का सशक्त प्रतीक था।
माननीय वस्त्र राज्य मंत्री श्री पबित्रा मार्गेरिटा के अनुसार, आज हथकरघा क्षेत्र देशभर में 35 लाख से अधिक बुनकरों और श्रमिकों को रोजगार देता है, जिनमें 72% महिलाएं हैं। असम के मुगा रेशम से लेकर बनारसी और कांजीवरम साड़ियों तक, भारत की हथकरघा परंपरा विश्वभर में अपनी विविधता और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है।
पूर्वोत्तर भारत इस क्षेत्र का अहम केंद्र है, जहाँ देश के कुल हथकरघा श्रमिकों में से 52% रहते हैं। सरकार आदिवासी बुनाई को बढ़ावा देने, हथकरघा पर्यटन, निर्यात और युवाओं के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दे रही है। राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और कच्चा माल आपूर्ति योजना (आरएमएसएस) के माध्यम से सूत की आपूर्ति से लेकर आधुनिक उपकरणों तक की सुविधा दी जा रही है।
तकनीकी नवाचार में भी हथकरघा क्षेत्र कदम से कदम मिला रहा है। एआई आधारित डिज़ाइन पूर्वानुमान, ब्लॉकचेन द्वारा प्रामाणिकता प्रमाणन और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म जैसे indiahandmade.com से बुनकरों को वैश्विक बाजार से जोड़ा जा रहा है। अब तक 106 हथकरघा उत्पाद जीआई टैग प्राप्त कर चुके हैं, जो उनकी अनूठी क्षेत्रीय पहचान को मजबूत करते हैं।
स्थायित्व और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर देते हुए, पर्यावरण-अनुकूल रंग, कार्बन-न्यूट्रल उत्पादन और सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। आईआईटी दिल्ली के सहयोग से कार्बन उत्सर्जन आकलन पर विस्तृत अध्ययन भी जारी किया गया है।
सरकार का लक्ष्य है कि हथकरघा न केवल सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षक बने, बल्कि 2047 तक विकसित भारत की आर्थिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण स्तंभ भी साबित हो। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आह्वान किया है – “हथकरघा को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और इसे वह सम्मान दें, जिसका यह हकदार है।”