
भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत मानवीय मूल्यों और ज्ञान की दिव्य परंपरा से समन्वित है। यहां हर पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक सोच, प्रकृति से जुड़ाव और आध्यात्मिक चिंतन का प्रतीक है। गुरु पूर्णिमा इन सभी तत्वों का सामूहिक प्रतिबिंब है, जो हमें आत्मचिंतन, कृतज्ञता और मार्गदर्शन के प्रति श्रद्धा की ओर प्रेरित करता है।
गुरु का अर्थ और भूमिका
संस्कृत में “गुरु” शब्द दो धातुओं ‘गु’ (अंधकार) और ‘रु’ (हटाने वाला) से मिलकर बना है – अर्थात जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करे। वैदिक काल की गुरुकुल परंपरा से लेकर आधुनिक युग के डिजिटल मेंटॉर तक, गुरु हमेशा से ज्ञान, नैतिकता और मार्गदर्शन का केन्द्र रहे हैं।
गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व
- आषाढ़ पूर्णिमा को ही भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया, इसलिए उन्हें आदि गुरु माना जाता है।
- यह दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत और वेदों का संकलन किया।
- यही दिन चतुर्मास का प्रारंभ है, जब संत व साधु किसी एक स्थान पर रहकर शिष्यों को गहन शिक्षा देते हैं।
गुरु – एक जीवनशैली
गुरु केवल शिक्षक नहीं, बल्कि जीवनदृष्टा हैं। उनकी भूमिका एक कुम्हार की तरह है –
“गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है…”
वे भीतर से सहारा देकर और बाहर से मार्गदर्शन कर शिष्य को आकार देते हैं। आधुनिक समय में भी – चाहे मां का स्नेह हो, शिक्षक का ज्ञान हो, या कोई डिजिटल मार्गदर्शक – गुरु के रूप बदल सकते हैं, पर उनकी उपयोगिता शाश्वत है।
समय की कसौटी पर खरे उतरे गुरु
राम के लिए विश्वामित्र, मीरा के लिए गुरु रविदास, कबीर के लिए रामानंद, विवेकानंद के लिए रामकृष्ण परमहंस – ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ गुरु-शिष्य संबंध ने इतिहास रचा है। आधुनिक युग में स्वामी दयानंद, रामदास स्वामी, योगानंद जैसे संतों ने मानवता को नई दिशा दी।
21वीं सदी में गुरु पूर्णिमा की प्रासंगिकता
आज जब तकनीक और सूचना का अतिरेक भ्रम, तनाव और प्रतिस्पर्धा को जन्म दे रहा है – तब गुरु की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। युवाओं को सही दिशा, समाज को नैतिक आधार और व्यक्ति को आत्म-प्रकाश की अनुभूति कराने में गुरु की भूमिका अमूल्य है।
यह पर्व क्यों जरूरी है?
गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब हम ज्ञान, कृतज्ञता और आत्मचिंतन के माध्यम से अपने जीवन में स्थायित्व और उद्देश्य तलाशते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि जिस तरह पूर्णिमा का चंद्रमा पूर्ण प्रकाश से आकाश को रोशन करता है, उसी तरह गुरु भी हमारे अंतःकरण को आलोकित करते हैं।