
पटना, 23 सितंबर।राज्य में खरीफ धान की फसल की रोपनी जोरों पर है। इस बीच कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि वे धान की पैदावार बढ़ाने और फसल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए समय पर खरपतवार नियंत्रण करें। विभाग का कहना है कि खेतों में खरपतवार की मौजूदगी फसल की उपज पर सीधा असर डालती है, इसलिए वैज्ञानिक तकनीक और अनुशंसित खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग आवश्यक है।
कृषि विभाग ने स्पष्ट किया है कि खरपतवारनाशी का छिड़काव तभी प्रभावी होगा जब खेत में पर्याप्त नमी हो और छिड़काव हवा शांत रहने तथा साफ मौसम में किया जाए। इसके लिए फ्लैट फैन/फ्लड जेट नोजल का उपयोग करने की सलाह दी गई है। धान की फसल में सामान्यतः दो बार निकाई-गुड़ाई की जाती है—पहली बुआई या रोपनी के 20-25 दिन बाद और दूसरी 40-45 दिन बाद। मजदूरों की कमी या प्रतिकूल मौसम के कारण जब यांत्रिक विधि संभव नहीं हो पाती, तब खरपतवारनाशी का प्रयोग कारगर विकल्प साबित होता है।
विभाग ने किसानों को कई रसायनों के बारे में जानकारी दी है। पेंडीमेथिलीन 30% ईसी को बुआई के 3-5 दिनों के भीतर 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। वहीं, बूटाक्लोर 50% ईसी को रोपनी के 72 घंटे के भीतर छिड़काव या सूखे बालू में मिलाकर भुड़काव किया जा सकता है। प्रेटिलाक्लोर 50% ईसी को रोपनी के 2-3 दिनों के भीतर 1.25 लीटर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए।
इसके अलावा, ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5% ईसी को 650-1000 मिली प्रति हेक्टेयर, पाइराजोसल्फॉन ईथाइल 10% डब्लूपी को रोपनी के 8-10 दिन के भीतर 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर और विस्पाइरी बैंक सोडियम 10% एसएल को पोस्ट-इमरजेन्स अवस्था में 200 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने की सलाह दी गई है।
कृषि विभाग का कहना है कि इन अनुशंसाओं का पालन कर किसान न केवल खरपतवार नियंत्रण कर पाएंगे बल्कि धान की बेहतर उपज सुनिश्चित कर सकेंगे। यह कदम राज्य में आधुनिक और वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा।