
भागलपुर, 9 अक्टूबर: जहां संसाधनों की कमी अक्सर बच्चों के सपनों को रोक देती है, वहीं भागलपुर जिले के कुछ सरकारी स्कूल के बच्चों ने यह साबित कर दिया कि जुनून और हौसला हो तो अभाव भी हार मान लेते हैं। जिला स्तरीय विद्यालय खेल प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंचे श्री ब्रह्मचारी आदर्श मध्य विद्यालय, घोघा के छात्रों ने बिना ड्रेस, बिना जूते और बिना उपकरणों के ही मैदान में उतरकर सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
बिहार में शिक्षा विभाग की ओर से खेल को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, पर यह तस्वीर बताती है कि जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का लाभ बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहा है। मैदान में पहुंचे बच्चों के पास न तो टी-शर्ट पर स्कूल का नाम था, न ही खेल के लिए जरूरी जूते या अन्य सामग्री। बावजूद इसके, इन बच्चों ने खेल भावना और आत्मविश्वास से मैच खेला।
जब संवाददाता ने उनसे पूछा कि उन्हें कोई सुविधा क्यों नहीं दी गई, तो बच्चों ने बताया कि विद्यालय प्रशासन ने खेल के लिए कोई मदद नहीं की। यहां तक कि जब वे जिला स्तरीय प्रतियोगिता के फार्म पर हस्ताक्षर करवाने गए, तो प्रिंसिपल ने डांट-फटकारकर भगा दिया। बाद में गांव के ही एक युवक की मदद से फार्म पर साइन हो पाया।
स्थानीय निवासी सुमन कुमार मंडल ने कहा, “ये बच्चे असली खिलाड़ी हैं। बिना किसी सुविधा के भी खेल रहे हैं, लेकिन अफसोस कि स्कूल प्रशासन इन्हें प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित कर रहा है। जब बच्चे कहते हैं कि वे खेलना चाहते हैं, तो स्कूल वाले तंज कसते हैं — ‘खेल के क्या करोगे?’”
यह कहानी सिर्फ कुछ बच्चों की नहीं, बल्कि उस सच्चाई की है जो सरकारी स्कूलों की दीवारों के पीछे छिपी है। सरकार की मंशा तो खेल और शिक्षा को साथ बढ़ाने की है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कई विद्यालयों में खेल को अभी भी समय की बर्बादी समझा जाता है।