
रांची/नई दिल्ली: झारखंड की राजनीति और आदिवासी आंदोलन के सबसे मजबूत स्तंभ, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का आज निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 81 वर्ष के थे। उनके निधन से पूरे झारखंड समेत देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है।
राजनीति में संघर्ष से शिखर तक का सफर
शिबू सोरेन, जिन्हें सम्मान से “दिशोम गुरु” कहा जाता है, ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में की थी। उन्होंने आदिवासी समुदाय के हक और झारखंड राज्य के गठन को लेकर आंदोलन शुरू किया।
1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना कर उन्होंने आदिवासी अस्मिता की नई आवाज़ को जन्म दिया।
लोकसभा और राज्यसभा में शानदार सफर
उनका पहला लोकसभा चुनाव 1977 में हुआ, हालांकि वे हार गए। लेकिन 1980 में पहली बार सांसद चुने गए और इसके बाद 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में भी लोकसभा पहुंचे।
वहीं, वे दो बार राज्यसभा सदस्य भी रहे — 1998 से 2001 और 2002 में।
1986 में वे झामुमो के महासचिव बने और पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री
शिबू सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान तीन बार संभाली — 2005, 2008 और 2009 में, लेकिन तीनों बार उन्हें बहुमत न मिल पाने के कारण अल्पावधि में ही इस्तीफा देना पड़ा।
कोयला मंत्री रहते समय विवादों में घिरे
2004 में केंद्र सरकार में कोयला मंत्री बने, परंतु विवादों और अदालती मामलों के चलते उन्हें उसी साल इस्तीफा देना पड़ा। इसके बावजूद, जनता और समर्थकों में उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई।
राजनीति में परिवार का प्रभाव कायम
शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वर्तमान में भी राज्य की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। सोरेन परिवार झारखंड की सत्ता और संघर्ष दोनों में एक अहम नाम बना हुआ है।
राष्ट्र शोक में: नेताओं और समर्थकों ने दी श्रद्धांजलि
देशभर से राजनेताओं, सामाजिक संगठनों और आम जनता ने शिबू सोरेन के निधन पर शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित कई हस्तियों ने सोशल मीडिया और प्रेस बयानों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी।
“दिशोम गुरु” की विरासत
शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं, आदिवासी अस्मिता, संघर्ष और स्वाभिमान के प्रतीक थे। उनका जीवन एक आदर्श है कि कैसे संघर्षों से निकलकर भी कोई व्यक्ति अपने समाज के लिए बदलाव का वाहक बन सकता है।