
Bihar News: बिहार के भागलपुर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर ने लीची उत्पादन में एक और ऐतिहासिक कदम उठाया है। विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने अब “बेदाना लीची” यानी सीडलेस लीची का सफलतापूर्वक विकास कर लिया है। इस लीची की विशेषता यह है कि इसमें बीज बेहद छोटा होता है और पल्प की मात्रा शाही लीची से भी अधिक होती है।
बिहार: देश की लीची राजधानी
गौरतलब है कि भारत में लीची उत्पादन का 50% हिस्सा बिहार से आता है। शाही लीची को पहले ही भारत सरकार की ओर से जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिल चुका है। अब उसी दिशा में, बीएयू के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने “बेदाना लीची” के लिए भी GI टैग हेतु भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा है।
शाही लीची से भी बड़ी और रसीली
कुलपति डॉ. सिंह ने बताया कि बेदाना लीची का आकार शाही लीची से बड़ा है और इसकी पल्प क्वालिटी भी कहीं बेहतर है। उपभोक्ताओं को यह स्वाद और उपयोगिता दोनों में नई अनुभूति देगा। इसकी विशेषता है कि इसका बीज न के बराबर होता है, जिससे खाने में आसानी और उपयोगिता दोनों बढ़ जाती है।
उत्पादन बढ़ाने की तैयारी में बीएयू
शुरुआत में बेदाना लीची के केवल 50 मदर प्लांट विश्वविद्यालय में थे, लेकिन अब इसकी संख्या बढ़ाकर 250 से 300 तक ले जाने की तैयारी की जा रही है। बीएयू का फ्रूट रिसर्च विंग इस दिशा में तेज़ी से कार्य कर रहा है।
एक्सपोर्ट की असीम संभावनाएं
शाही लीची पहले से ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बना चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब यह सीडलेस “बेदाना लीची” बाजार में आएगी, तो इसकी विदेशों में भारी मांग होगी और यह लीची बिहार को वैश्विक फल बाजार में नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है।