
भागलपुर: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला जितिया पर्व इस बार शनिवार को नहाए-खाए के साथ शुरू हुआ। पर्व की शुरुआत होते ही गंगा घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। तड़के सुबह से ही बड़ी संख्या में महिलाएं गंगा स्नान के लिए घाटों पर पहुंचीं और पवित्र डुबकी लगाकर अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना की। मान्यता है कि गंगा स्नान के बाद ही महिलाएं नहाए-खाए का भोजन ग्रहण करती हैं।
सुबह से ही शहर के विभिन्न घाटों—बरारी घाट, कचहरी घाट, बाबू घाट, अजगैबीनाथ घाट सहित प्रमुख स्थानों पर श्रद्धालु महिलाओं की लंबी कतारें देखने को मिलीं। महिलाएं स्नान के बाद पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हुई घर लौटीं और विशेष व्यंजन बनाकर नहाए-खाए की रस्म निभाई।
प्रशासन ने किया विशेष प्रबंध
श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन पहले से ही अलर्ट था। सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता बनाने के लिए गंगा घाटों पर पुलिस बल और आपदा प्रबंधन की टीम तैनात की गई थी। हर घाट पर बैरिकेडिंग और भीड़ नियंत्रण के इंतजाम किए गए। नगर निगम द्वारा घाटों की साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था और पेयजल की सुविधा सुनिश्चित की गई थी। प्रशासनिक अधिकारियों ने स्वयं मौके पर पहुंचकर व्यवस्थाओं का जायजा लिया और महिलाओं को बिना किसी असुविधा के स्नान-पूजा करने में मदद की।
पर्व का महत्व
जितिया पर्व का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसे मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। महिलाएं यह व्रत अपने बच्चों की दीर्घायु, स्वस्थ जीवन और परिवार की समृद्धि की कामना के लिए करती हैं। नहाए-खाए के दिन महिलाएं विशेष भोजन करती हैं और अगले दिन निर्जला उपवास रखकर भगवान जीमूतवाहन की पूजा-अर्चना करती हैं।
श्रद्धा और आस्था का संगम
गंगा घाटों पर श्रद्धा, आस्था और पारंपरिक संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला। रंग-बिरंगे परिधानों में महिलाएं गंगा स्नान कर अपने बच्चों के मंगलमय जीवन की प्रार्थना करती दिखीं। जगह-जगह धार्मिक गीतों और भजन की स्वर लहरियों ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
नहाए-खाए के साथ शुरू हुआ यह पर्व रविवार को निर्जला उपवास और पूजा-अर्चना के साथ संपन्न होगा।