
भागलपुर: गोपालपुर में गंगा का पानी अब केवल खेत-खलिहानों को नहीं, बल्कि लोगों की उम्मीदों और रोजमर्रा की जिंदगी को भी बहा ले गया है। यहां बाढ़ का असर सिर्फ जलजमाव तक सीमित नहीं, बल्कि भूख, बेबसी और इंसानियत की मजबूरी की दिल दहला देने वाली तस्वीरें पेश कर रहा है।
एक मार्मिक दृश्य में सड़क किनारे मिट्टी का चूल्हा पड़ा है, जो कभी बच्चों के लिए गर्मागर्म भोजन पकाने का साधन था, लेकिन अब ठंडा और वीरान पड़ा है। पास ही एक मां अपने मासूम को गोद में लिए बैठी है, चेहरे पर गहरी बेबसी और आंखों में थकान की लकीरें साफ झलकती हैं। चौकी पर एक बच्चा गहरी नींद में है—शायद भूख और थकान ने उसे नींद के हवाले कर दिया हो।
इसी बीच एक महिला अपने बच्चों के लिए थाली में चावल और दाल परोसने की कोशिश करती है, लेकिन इससे पहले कि वह थाली तक पहुंच पाए, एक भूखी बकरी आकर खाना खा जाती है। यह नजारा बताता है कि यहां इंसान और मवेशी दोनों एक ही पीड़ा से गुजर रहे हैं—भूख और बेबसी की पीड़ा।
चारों तरफ पानी से घिरे इन परिवारों के लिए सड़क ही अब घर बन चुकी है। पक्की छत का सहारा छिन गया है, दिन में तपती धूप और रात में अंधेरे के बीच बच्चों की रोने की आवाजें इस आपदा की सबसे कड़वी सच्चाई बयान करती हैं।
प्रशासनिक मदद की उम्मीदें अब भी इन बाढ़ पीड़ित चेहरों पर टिकी हैं, लेकिन राहत सामग्री की कमी और सीमित संसाधनों के चलते हालात में सुधार की रफ्तार बेहद धीमी है। कई परिवारों के पास न तो पर्याप्त भोजन है और न ही पीने का साफ पानी। बीमारियों का खतरा लगातार मंडरा रहा है, खासकर छोटे बच्चों और बुजुर्गों पर।
गोपालपुर के लोग आज सिर्फ बाढ़ से नहीं, बल्कि भूख और अनिश्चित भविष्य से लड़ रहे हैं। उनकी आंखों में मदद की उम्मीद है—एक उम्मीद कि कोई हाथ आगे बढ़ेगा, जो उन्हें इस जल और जीवन संकट से बाहर निकालेगा।