
Bhagalpur News: भागलपुर जिले के कहलगांव में स्थित NTPC पावर प्लांट से उड़ रही राख ने स्थानीय लोगों की ज़िंदगी को जहरीला बना दिया है। आंखों से सिर्फ राख नजर आती है और सांस लेना भी दूभर हो गया है। एनटीपीसी की राखबांध से उड़ने वाली यह राख अब लोगों के जीवन में रोज़मर्रा की मुश्किलें ही नहीं, बल्कि गंभीर बीमारियों का सबब भी बनती जा रही है।
हर तरफ़ राख ही राख, जीना बेहाल
NTPC कहलगांव की परियोजना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले एकचारी और भोलसर गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यहां गर्मियों में राखबांध से भारी मात्रा में राख उड़कर आसमान में छा जाती है और आसपास के घरों, पानी, कपड़ों और भोजन तक में जम जाती है। कई बार सड़क पर इतनी राख जमा हो जाती है कि वाहन तक दिखाई नहीं देते, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा लगातार बना रहता है।
राख की बारिश और बीमार होती जिंदगी
स्थानीय निवासी सावित्री देवी बताती हैं, “दिन-रात राख उड़ने से जीना मुश्किल हो गया है। खाना, पीना, सांस लेना तक दूभर हो गया है। एनटीपीसी कोई उपाय नहीं कर रहा।”
सुलेखा देवी कहती हैं, “घर में मासूम बच्चा है, उसे कमरे में बंद करके रखना पड़ता है। खुले में नहीं छोड़ सकते। 15 साल पहले सब कुछ ठीक था, लेकिन जब से ऐस डेक बना है, तब से हम राख में जी रहे हैं।”
सीता देवी की आंखों पर रोज़ राख की परत जम जाती है। “सुबह आंख खोलना मुश्किल होता है। बर्तन में खाना रखने के 10 मिनट में ही राख गिर जाती है,” वे बताती हैं।
कृषि और जलस्रोत भी बर्बाद
एनटीपीसी से निकलने वाली राख और जहरीले पानी ने कौआ नदी को भी प्रदूषित कर दिया है। यह वही नदी है जिससे एकचारी और भोलसर गांवों की सिंचाई होती है। अब यह पानी खेती और पशुओं के उपयोग लायक भी नहीं रहा। आरती कुमारी कहती हैं, “12 बीघा जमीन एनटीपीसी को दी, बाकी जो बचा, उसमें खेती करते हैं। लेकिन अब राख ने खेत भी बंजर कर दिया है।”
सरकारी उदासीनता, कंपनी की चुप्पी
स्थानीय लोगों का आरोप है कि शिकायतों के बावजूद एनटीपीसी कोई समाधान नहीं कर रही। न तो कोई स्थायी उपाय, न ही स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। उमा देवी कहती हैं, “घर में बिछावन पर राख ही राख दिखती है। अब तो ऐसा लग रहा है कि घर छोड़कर भागना पड़ेगा।”
प्रशासन की प्रतिक्रिया
भागलपुर के जिलाधिकारी डॉ. नवल किशोर चौधरी ने कहा, “यह सही है कि राख से लोगों को समस्या हो रही है। कंपनी को सड़क पर पानी छिड़काव और बंद गाड़ियों से राख का परिवहन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।” हालांकि, जमीनी हकीकत इससे इतर नजर आती है।
अब सवाल यह है:
क्या देश को रोशन करने वाले इस पावर प्लांट की चमक की कीमत स्थानीय लोग अपनी सेहत और जीवन की तबाही से चुकाएंगे?
कब तक जिम्मेदार अधिकारी चुप रहेंगे और कब तक यह राख सिर्फ आसमान नहीं, लोगों के सपनों को भी ढकती रहेगी?