प्रमोद मिश्रा
लोक आस्था का महापर्व छठ श्रद्धा समर्पण के साथ शारीरिक, मानसिक और वैचारिक शुद्धता का त्यौहार है। जिसमें किसी भी जाति संप्रदाय के लिए कोई बंधन नहीं है। अगर श्रद्धा समर्पण के साथ जो भी छठ मां की शरण में जाता है, वह अपने वांछित मनोकामना को जरूर प्राप्त करता है। सबसे ज्यादा इस महापर्व में इस बात का ध्यान रखना होता है कि जाने अनजाने में कहीं कोई गलतियां ना हो और उसी गलती की माफी के लिए सबसे पहले छठ मां से माफी मांगी जाती है। छठ मां से कहा जाता है और गीतों के माध्यम से कहा जाता है-

करिह छमा छठी मईया
भूल-चुक गलती हमार… पुरुष प्रधान समाज आज भले ही पुत्रों को महत्व देता हो लेकिन इस पारंपरिक त्यौहार के गीतों को सुनने से पता चलता है की अनादि काल से बेटी और बेटियों के आगे का जीवन सुखमय होने लिए किस प्रकार छठ मां से प्रार्थना की जाती है छठ माय से पुत्री प्राप्ति के लिए जहां रूनकी-झुनकी बेटी मांगी जाती है तो वही बड़ी- सयानी बेटियों के लिए पढ़ा-लिखा योग्य वर के रूप में पढ़ल पंडितवा दामाद मांगते हुए कहा जाता है-
रुनकी-झुनकी बेटी मांगीला,
पढ़ल-पाण्डिवता दमाद

ताकि पढ़ा-लिखा लड़का दामाद के रूप में मिले जोकि बेटी को समझ सके यहां पंडित का मतलब शिक्षित और समझदार होता है। आस्था का यह महापर्व किसी भी प्रकार के द्वेष या मतभेद को स्वीकार नहीं करता। भगवान सूर्य जब स्वयं उदित होते हैं तब बिना किसी भी मतभेद के सब पर एक समान अपनी अपना प्रकाश बिखेरते हैं और संदेश देते हैं कि उनके लिए सब समान है सब उनकी संतान है परंतु अगर मनुष्य खुद दूसरों से किसी भी प्रकार से भेदभाव करता है। तो इस पर्व में उसे ऐसा नहीं करना चाहिए वरना सब कुछ ठीक रहने पर भी लोग परेशानी में पड़ जाते हैं। इसलिए तो कहा जाता है कि छठ पर्व शारीरिक शुद्धता के साथ वैचारिक और मानसिक शुद्धता का पर्व है जिस का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यह महापर्व अहंकार और अभिमान के त्याग का पर्व है छठ यह भी सीख देता है कि आप कितने बड़े पद पर आसीन क्यों ना हो छठ मां के सामने उसके अभिमान को त्याग कर हर तरह की सेवा करने के लिए तैयार रहें तभी तो पारंपरिक गीतों में महिलाएं कहती है –
होए ना बलम जी कहरिया,
बहंगी घाटे पहुंचाई……
अर्थात हमारे पति ही कहार यानी पहुंचाने वाले वाले बन जाएंगे और बहंगी लेकर खुद से घाट पर जाएंगे…..
(आलेख: प्रमोद मिश्रा,
प्राचार्य – एस. ग्लोबल स्कूल भीखनपुर, भागलपुर)