धर्मभागलपुर

वसंत पंचमी पर विशेष… जयति जय जय माँ सरस्वती जयति वीणा…

रवि शंकर सिन्हा सिल्क टीवी भागलपुर, बिहार

वसन्त पंचमी विशेष…….

वसंत पंचमी पर विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा की जाती है, जिसके पीछे पौराणिक कथा है। मान्यता है कि देवी सरस्वती की सबसे पहले पूजा भगवान श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने की थी, और इससे जुड़ी एक और कथा भी है, जिसमें देवी सरस्वती द्वारा श्रीकृष्ण को मनमोहक रूप को देखकर उनकी इच्छा उन्हें पति के रूप में पाने की हुई, और भगवान कृष्ण को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं। लेकिन देवी सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया और प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी के दिन उनकी पूजा और आराधना करने वाले को विद्या और विवेक के साथ उनकी कृपा की प्राप्ति होने की बात कही।

वसंत ऋतु के आगमन पर उत्सव मनाने का दिन वसंत पंचमी, मां सरस्वती की आराधना का विशेष पर्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के ही दिन ब्रम्हा जी ने मां सरस्वती की उत्पत्त‍ि की थी। तभी से वसंत पंचमी का यह पर्व मां सरस्वती की आराधना का प्रमुख पर्व मानकर इनकी पूजा और वंदना की जाती है। वसंत पंचमी का दिन विद्या की अभिलाषा रखने वाले व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। सबसे पहले मां सरस्वती की पूजा के बाद ही विद्यारंभ करते हैं। ऐसा करने पर मां प्रसन्न होती है और बुद्धि विद्या के साथ विवेकशील होने का आशीर्वाद देती है। विद्यार्थी के लिए मां सरस्वती का स्थान सबसे पहले होता है। सबसे पहले मां सरस्वती की पूजा के बाद ही विद्यारंभ किया जाता हैं। ऐसा करने पर मां प्रसन्न होती है, और बुद्धिमान एवम् विवेकशील बनने का आशीर्वाद देती है। विद्यार्थी के लिए मां सरस्वती का स्थान सबसे पहले होता है।

सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पांच रूपों में से सरस्वती एक है, जो वाणी, बुद्धि, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। वसंत पंचमी का अवसर इस देवी को पूजने के लिए पूरे वर्ष में सबसे उपयुक्त तिथि है, क्योंकि वसंत ऋतु काल में धरती का रूप सबसे अधिक सुंदर और मनमहक होता है। देवी सरस्वती के ज्ञान का प्रकाश पूरी धरा को प्रकाशमान करता है। जिस तरह सारे देवों और ईश्वरों में जो स्थान श्रीकृष्ण का है वही स्थान ऋतुओं में वसंत का है, और यह बात स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने मनुष्यों की योनी बनाई, और एक दिन ब्रह्मदेव ने पृथ्वी पर भ्रमण करने के दौरान उन्होंने देखा की उनके द्वारा रची गई सृष्टि में सभी जीव हैं, लेकिन फिर भी पृथ्वी पर काफी शांति है, जिसके बाद ब्रह्मा जी को लगा की अभी भी कहीं कुछ कमी रह गई है। तभी उन्होंने अपने कमंडल से जल निकाला और धरती पर छिड़का, जिससे पूरी धरा में हरियाली छा गई और वहां पर चार भुजाओं, श्वेत वर्ण वाली, हाथों में पुस्तक, माला और वीणा धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुईं। जिन्हें ब्रह्मा जी ने वाणी की देवी सरस्वती के नाम से संबोधित किया और सभी जीवों को वाणी प्रदान करने को कहा। तब मां सरस्वती ने अपनी वीणा के मधुर नाद से जीवों को वाणी प्रदान की। जिस दिन मां सरस्वती प्रकट हुई वह तिथि वसंत पंचमी थी। ऐसी मान्यता है की मां शारदा माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रकट हुई थीं, इसलिए वसंत पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है। इस दिन को देवी सरस्वती के प्रकाट्य दिवस या जन्मदिवस के रुप में भी मनाया जाता हैं। मां सरस्वती ने अपनी वीणा से संगीत की उत्पत्ति की, जिस वजह से वह कला और संगीत की देवी कही जाती हैं। भक्त मां शारदा को वाग्देवी, बागीश्वरी, भगवती, वीणावादनी जैसे कई नामों से पुकारते हैं। उनको पीला रंग काफी प्रिय है, इसलिए पूजा के समय पीला वस्त्र धारण कर उनको पीली वस्तु और पुष्प अर्पित किया जाता है। वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक त्यौहार है, और इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने का विधान हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी कहा गया है, जबकि पुराणों-शास्त्रों और अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से वसंत पंचमी के महत्व को दर्शाया गया है।


माघ शुक्ल पंचमी को वसन्त पंचमी, श्रीपंचमी और सरस्वती पूजा के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा भी जाता है कि जब फूलों पर बहार आ जाती हो, खेतों में सरसों का फूल सोना जैसे चमकने लगता हो, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हो, आमों के पेड़ों पर मंजर आ जाए, हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं हो और भंवरे भंवराने लगते हो तो यह साफ हो जाता है कि ये सभी संकेत वसंत ऋतु के आगमन का है, और इसी वसंत का स्वागत करने के लिए माघ मास के पाँचवे दिन पंचमी तिथि को एक बड़ा जश्न मनाया जाता है, जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव के अलावा विद्या की देवी मां सरस्वती की भी पूजा हर्षोल्लास के साथ की जाती है। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यूं तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है, और इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक बुद्धि, विद्या और ज्ञान रूपी समृद्धि प्रदान करने की प्रार्थना एवम् कामना श्रद्धालु करते हैं। कलाकारों, कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार, नृत्यकार और अध्ययन से जुड़े सभी छात्र छात्राओं एवम् शिक्षाओं के लिए वसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन सभी पूरे भक्ति भाव से मां शारदे की पूजा अर्चना और वंदना करते हैं। वसंत पंचमी का महत्व त्रेता युग से भी जुड़ा है, जब त्रेता युग में रावण द्वारा माता सीता के हरण के बाद भगवान श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण दिशा की ओर गए और यही श्रीराम एक स्थान दण्डकारण्य भी गए, जहां एक भीलनी और गौतम ऋषि की शिष्या माता शबरी रहती थी। जिस दिन भगवान राम उस आश्रम में पहुंचे वो तिथि माघ मास की वसंत पंचमी थी, वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी उस आश्रम में पहुंचे थे, जहां आज भी वनवासी माता सबरी के मंदिर और एक शिला को पूजते हैं, लोगों की ऐसी मान्यता है की श्रीराम उसी शिला पर बैठे थे। वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। इतिहसकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान
ने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार पृथ्वीराज चौहान पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी उन्हें और कवि चंदबरदाई को लेकर अपने साथ अफगानिस्तान गया और वहां मोहम्मद गोरी ने उनकी आंखें फोड़ दीं। लेकिन सन 1192 की बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान को मृत्युदंड देने से पूर्व मोहम्मद गोरी ने उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखने की इच्छा जाहिर की, और गोरी ने कवि चंदबरदाई के सलाह पर काफी ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर प्रहार कर पृथ्वीराज को बाण चलाने का संकेत दिया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को अपने शब्दों के माध्यम से संकेत दिया। जो काफी चर्चित है। कवि चंबरदाई ने कहा “चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान”। बस इतनी सी बात और तवे पर किए प्रहार की आवाज सुनकर पृथ्वीराज चौहान ने बिना कोई गलती किए शब्दवेदी वाण चलाया, जो वाण सीधा जाकर मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा लगी और उसकी मौत हो गई। हालांकि इसके बाद इसी वसंत पंचमी के दिन चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में खंजर मारकर अपना जीवन बलिदान कर दिया। जिसके कारण यह दिन उन वीरों के वीरता और बलिदान के लिए भी याद किया जाता है। सिख समुदाय के लोगों के लिए बसंत पंचमी का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह का विवाह हुआ था। वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है, जिनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी तिथि को ही लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। गुरु राम सिंह कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे, लेकिन बाद में अपने घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, लेकिन आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण ये प्रवचन करने लगे और इनके प्रवचन सुनने लोग भी आने लगे। धीरे-धीरे समय के साथ इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। गुरू रामसिंह, गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार,अन्तरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह जैसे समाज की बेहतरी के कार्यों पर बहुत जोर देते थे, और उन्होंने सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था भी चलायी थी। वसंत पंचमी के दिन प्रसिद्ध और महान राजा भोज का जन्म हुआ था, इस दिन राजा भोज एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा शामिल होती थी, और यह भोज और उत्सव चालीस दिन तक चलता था। इतना ही नहीं बल्कि यही वह पावन तिथि है जब वसन्त पंचमी के ही दिन हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस भी है। 28 फरवरी 1899 में महाकवि निराला जी का जन्म बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। यहां हमने आपको अबतक मां सरस्वती के उद्भव, पूजा, और बसंत पंचमी से जुड़े महत्व और विशेष विभूतियों के बारे में जानकारी दी, लेकिन अब यह भी जानना आवश्यक है कि इस वर्ष मां वीणा वरदायिनी की पूजा बसंत पंचमी 5 फरवरी को मनाई जा रही है, जिसको लेकर कई तरह से तैयारियां भी की गई है। हालांकि इन सब के बावजूद वैश्विक महामारी कोरोना और इसके नए वेरिएंट से मची तबाही के कारण ना सिर्फ सरस्वती पूजा का त्योहार और उत्सव प्रभावित हुआ है, बल्कि इसका खामियाजा बाजार और मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकारों पर व्यापक रूप से पड़ा है। इस वैश्विक आपदा के कारण इस पेशे से जुड़े ना जाने कितने ही कारीगर के परिवार पर भुखमरी की कगार पर पहुंच गए, और रही सही कमी कोविड के कारण लगे सार्वजनिक स्थलों और विद्यालयों में पूजा पर लगे प्रतिबंध ने पूरी कर दी। यहां यह भी देखना होगा, की आखिर इन मूर्तिकारों के घर के दिए बिना प्रतिमा के खरीदारों के कैसे जलेंगे, यह नीति नियंताओं के लिए बड़ा प्रश्न है। अन्त में हम सिल्क टीवी की पूरी टीम की ओर से सभी दर्शकों, श्रोताओं और देशवासियों को वसंत पंचमी एवम् विद्या की अधिष्ठात्री मां सरस्वती की पूजा की ढेर सारी शुभकामना देते है।

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