
सैयद ईनाम उद्दीन
सिल्क टीवी/भागलपुर (बिहार ) : कोरोना वायरस से बचाव के लिए देश के विभिन्न राज्यों में अब भी लॉकडाउन लगा है। इस बीच एक नई तरह की बीमारी लोगों में देखी जा रही है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि पिछले कुछ महीनों से खासकर कोरोना से ठीक हुए मरीज भी अवसाद और तनाव में जी रहे हैं। मनोचिकित्सकों कि माने तो लॉकडाउन से पहले एंग्जाइटी के मरीज ज्यादा थे, लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद डिप्रेशन के मरीजों की संख्या पहले की तुलना में दोगुनी हो गई है । वहीं भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अचानक लगा ब्रेक और कोरोना वायरस के डर ने लोगों के मस्तिक्स पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। लोगों में चिंता, डर, अकेलेपन और अनिश्चितता का माहौल देखा जा रहा है। कोरोना संक्रमण के बीच लोग किस तरह मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं, आम इंसान को हो रही इन समशीय पर हमने बात की पटल बाबू रोड स्थित एडवांस न्यूरो केयर के न्यूरो फिजिशियन डॉ. नीरज सर्राफ से। मस्तिष्क एवं नस रोग विशेषज्ञ डॉ. नीरज ने बताया कि कई लोग तो इस वक़्त अपने घरों और दोस्तों से दूर हैं और अकेले ही हालात से निपट रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक कमरे में बंद अनिश्चित भविष्य के बारे में सोचकर लोगों की मानसिक दिक्कतें बढ़ गई हैं। साथ ही कहा कि पिछ्ले एक साल से पूरा माहौल बदल गया है और इस दौरान दिनभर लोग कोरोना वायरस की ख़बरें देख रहे हैं, जिसका असर दिमाग पर पड़ना स्वाभाविक है। डॉ. की माने तो सामान्य स्ट्रेस तो हमारे लिए अच्छा होता है, इससे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है लेकिन ज़्यादा स्ट्रेस, डिस्ट्रेस बन जाता है।ऐसा होने पर हमें आगे कोई रास्ता नहीं दिखता और घबराहट भी होती है। डॉ. नीरज सर्राफ ने कोरोना संक्रमण काल में सामाजिक दूरी के बदले शारीरिक दूरी बनाएं रखने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि अवसाद से बाहर निकलने के लिए व्यायाम और योग के साथ संतुलित आहार भी आवश्यक है।