कृषि कानूनों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति अपनी पहली प्रत्यक्ष बैठक 19 जनवरी को यहां पूसा परिसर में कर सकती है। समिति के सदस्य अनिल घनवट ने गुरुवार को यह बात कही। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर समिति को किसानों से बातचीत करने के लिए उनके प्रदर्शन स्थल पर जाना पड़ा तो वह इसे प्रतिष्ठा या अहम का मुद्दा नहीं बनाएगी।समिति के सदस्यों को गुरुवार को डिजिटल तरीके से वार्ता करनी थी, लेकिन पूर्व सांसद और किसान नेता भूपिंदर सिंह मान के समिति से अलग हो जाने के बाद बैठक नहीं हो सकी। घनवट ने कहा कि समिति के मौजूदा सदस्य अपनी डिजिटल बैठक अब शुक्रवार को कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह तब तक समिति की सदस्यता नहीं छोड़ेंगे जब तक कि शीर्ष अदालत इसके लिए नहीं कहती। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि अन्य कोई सदस्य समिति से दूरी बनाएगा।उच्चतम न्यायालय ने नए कृषि कानूनों के मसले पर अध्ययन के लिए 11 जनवरी को चार सदस्यीय समिति का गठन किया था। इन कानूनों के खिलाफ खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के कृषक दिल्ली की सीमाओं पर 40 दिन से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसान आंदोलन के समाधान के लिए गठित समिति के सदस्य भाकियू के भूपिंदर सिंह मान के हटने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगले हफ्ते विचार करेगा कि कमेटी में अब किसे रखा जाए। दरअसल, कमेटी में भूपिंदर मान के नाम पर शुरुआत से ही विवाद हो रहा था। किसान नेताओं का कहना था कि मान पहले ही तीनों नए कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। किसान नेताओं ने समिति में शामिल अन्य नामों पर भा ऐतराज जताया था। शीर्ष अदालत की ओर से मंगलवार को बनाई गई चार सदस्यों की समिति में भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनवत, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान दक्षिण एशिया के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं। अनिल घनवत ने मीडिया में लिखे अपने लेखों में किसान कानूनों के पक्ष में राय दी थी। कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर सरकार ने सितंबर में तीनों कृषि कानूनों को लागू किया था। सरकार ने कहा था कि इन कानूनों के बाद बिचौलिए की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसानों को देश में कहीं पर भी अपने उत्पाद को बेचने की अनुमति होगी। वहीं, किसान तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं। प्रदर्शन कर रहे किसानों का दावा है कि ये कानून उद्योग जगत को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए हैं और इनसे मंडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था खत्म हो जाएगी।