सिल्क टीवी/भागलपुर (बिहार) : मित्रों देश के हद कचड़े पढ़े लिखों ने भारतीय कानून को मजाक बना दिया है। मजाक की हद तो यह कि कानून को अंधा करार दिया गया, और लोग सुविधा अनुसार कानून की आड़ में छल बल के साथ अपनी रोटी सेकते रहे। अंगरथी, अंग नरेश कर्ण के साथ भी तो यही हुआ था। करण की शक्ति को भगवान कहलाने वाले इंद्र वरन नहीं कर पाए और बहरूपिया का वेश धारण कर कर्ण का कवच कुंडल छल-बल से दान में मांग कर उनकी शक्ति का हरण कर लिया। लेकिन सूर्य पुत्र कर्ण की आंतरिक वेदना के प्रभाव से भगवान इंद्र की गिनती छुद्र में होने लगी, परिणाम स्वरूप आज भी धरती के किसी भी कोने में इंद्र के नाम के कोई भव्य मंदिर नहीं है न ही लोग विधिवत उसकी पूजा आराधना करते हैं।

जब के छोटे-छोटे कुल देवी-देवताओं की पूजा नित प्रति हो रही है। लगभग इसी तरह की घटना अंगिका के साथ भी घटी। 4-5 करोड़ आम जन की भाषा, अंगिका चौमुखी संपन्नता की दहलीज पर खड़ी थी। चाहे इतिहास हो, लिपि हो, शब्दकोश हो, भूगोल हो, व्याकरण हो अन्य विधाओं के हजारों पुस्तकें हो। भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल होने की संपूर्ण दक्षता के साथ भारत सरकार के दरवाजे पर खड़ी थी। गिने चुने मैथिली नेताओं और सरकारी दरबारियों को यह नागवार लगा। उन्होंने अपने छल-बल से अंगिका के समस्त भूभाग का कागजी अतिक्रमण करते हुए मैथिली भाषी क्षेत्र घोषित करवाने का पाप किया और कवि हृदय तत्कालीन माननीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी को भावनात्मक बातों और संबंधों की जाल में फंसा कर 4-5 करोड़ लोगों की मातृभाषा अगिका भाषा की जगह 1-2 जिले की भाषा, मैथिली को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने में सफल हो गए और बड़ी बहन अंगिका भाषा की जागीर हथिया लिए। अंधा कानून का किरदार मैथिली के प्रति उदार और अंगिका की अनदेखी कर काना होने का सबूत छोड़ दिया। वैसे अंग क्षेत्र से छल करने का भय आज भी उनके दिल और दिमाग में शंकर की जटा में गंगा की तरह घूम रहा है। फलत: नया राग अलापने लगा कि- अंगिका भाषा तो है लेकिन मैथिली की उपभाषा, या उप बोली है। एक बात और कि- जहांँ बिहार के लोकप्रिय भाषा मगही और बज्जिका मैथिली पर भारी पड़ती है वहां मैथिली के लोग मगही और बज्जिका भाषा का भी मजाक उड़ाते हैं। दिल्ली में बनी मैथिली-भोजपुरी एकैडमी का भी विरोध करते हुए भोजपुरी से मैथिली एकेडमी को अलग करबाने के लिए व्याकुल हैं। यानी मैथिली के सिवा बिहार के अन्य लोक भाषाओं से इतनी घृणा, घृणित आचरण के लोग ही कर सकते हैं।मैथिली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद दर्जनों लोग मैथिली भाषा के साथ उच्च स्तरीय परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर उच्च पद पर आसीन हो गए।

वैसे अल्प ज्ञानी और चापलूस अधिकारी आज खुलेआम अंगिका के खिलाफ काम कर रहे हैं चाहे वह राज्य सरकार का कार्यालय हो, जनगणना आयोग हो, साहित्यिक अकैडमी हो, गृह मंत्रालय हो या पीएमओ हो। जब अंगिका भाषा के खिलाफ उच्च पद पर आसीन सरकारी नौकरशाह या दरबान ही अंगिका को आगे जाने से रोकेगा तो इंसाफ कब और कैसे मिल सकता है? अलबत्ता तो यह कि मैथिली को जातिगत भाषा बताकर मैथिल ब्राह्मणों की भाषा कहने से नहीं चूकते। जबकि मैथिल ब्राह्मणों में से 90% ब्राह्मण अंगिका भाषा के साथ हैं। अंगिका की लेखनी और लड़ाई में सबसे आगे हैं। हद तो यह कि तथाकथित चंद सरकारी मैथिल तोते गलत तर्क दे रहे हैं कि अंगिका भाषा को अपना व्याकरण नहीं है लिपि नहीं है वर्तनी नहीं है, अंगिका भाषी देवनागरी लिपी में लिखा करते हैं। उन्हें पता होना चाहिए अंगिका भाषा को सब कुछ है, केवल प्रचार प्रसार और सुविधा के ख्याल से देवनागरी लिपि में लिखने की सोच बनाई है। मैथिली भाषा भी 99.99% यही कर रहे हैं। वे लोग भी आपनी लिपि को छूते तक नहीं हैं।
अंग महाजनपद की अंगिका भाषी जनता बौद्ध के तरह शांत चित रहने वाले प्राणी हैं और समस्या नाक तक आने पर शिव की तरह विकराल रूप भी धारण करने की क्षमता रखते हैं। शायद वक्त ने अंगिका भाषी को इसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। “जय या क्षय” ।
अंग विभूति राष्ट्रकवि दिनकर ने भी तो यही कहा है-
“अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है,
पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है।
तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिंधु किनारे,
बैठे पढते रहे छन्द अनुनय के प्यारे प्यारे ।
उत्तर में जब एक नाद भी उठा नही सागर से,
उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से।”
इसीलिए हे माँ, मातृभूमि और मात्रिभाषा अंगिका के वीर सपूत! उठो! जागो और अंगिका भाषा के विरोधियों का प्रतिकार करो। आजाद भारत में अन्य मात्रृभाषाओं की तरह मात्रृभाषा अंगिका को भी आजादी की सांस लेने का रास्ता दो, मौका दो। भारत सरकार के गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री को अंग महाजनपद के घर-घर से यह संदेश प्रेषित हो कि अंगिका भाषा 4-5 करोड़ लोगों की मातृभाषा है। अब दोनों आंँखें खोलिए और प्रमाणित तथ्यों के आधार पर अंगिका भाषा को जल्द से जल्द संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर सत्य का साथ दीजिए। वरना हम अंग महाजनपद के जनता
स-समय सरकार का प्रतिकार करेंगे।
(आलेख: सुधीर कुमार प्रोग्रामर)