
रिपोर्ट – सैयद ईनाम उद्दीन
सिल्क टीवी/भागलपुर (बिहार) : इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नए साल की शुरुआत मुहर्रम के महीने से होती है। शिया मुसलमानों के लिए ये महीना बेहद गम भरा होता है। बताया जाता है कि आज से लगभग 1400 साल पहले कर्बला की जंग हुई थी और ये जंग अन्याय के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी।

जंग में पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे। इधर भागलपुर का ऐतिहासिक बड़ा इमामबाड़ा पूर्वी बिहार के शिया मुसलमानों का केंद्र है। जहां मुहर्रम की दसवीं को पहलाम नहीं होता। बल्कि इसके एक दिन बाद यानी मुहर्रम की 11वीं तारीख को पहलाम होता है। वहीं शनिवार को असानंपुर स्थित ऐतिहासिक बड़ा इमामबाड़ा परिसर से अलम का जुलूस निकाला गया।

इस दौरान शिया समुदाय के लोगों ने सड़क पर मातम करते हुए ईमाम हुसैन और उनके जानिसारों की शहादत को याद किया। हालांकि कोविड के कारण मातमी जुलूस में लोगों की संख्या काफी कम दिखी। जबकि पहलाम शांतिपूर्ण वातावरण में संपन्न कराने के लिए जिला और पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। सभी चौक चौराहों पर पुलिस के जवान मुस्तैद दिखे। इस दौरान तातारपुर इंस्पेक्टर संजय कुमार सुधांशु, विश्वविद्यालय ओपी प्रभारी श्रीकांत चौहान, यातायात प्रभारी ब्रजेश कुमार, दारोगा मो. कमाल समेत कई थाना की पुलिस सक्रिय रही।

वहीं शिया यूथ कमेटी के जिला सचिव सैयद रागिब हसन ने बताया कि जुल्म करने वालों का अंत हो जाता है और हक के लिए लड़ने वालों का नाम अमर। इसलिए यजीद का नाम मिट गया और हजरत इमाम हुसैन की शहादत जिंदा है। उन्होंने कहा कि यजीद था और हुसैन हैं।

जानकारों ने बताया कि शिया मुसलमान अपना ग़म जाहिर करने के लिए मातम और मजलिस करते हैं। साथ ही मुहर्रम का चांद दिखाई देते ही सभी शिया समुदाय के लोग 2 महीने 8 दिनों तक शोक मनाते हैं। भागलपुर शिया वक्फ कमेटी के जिला सचिव सैयद जीजाह हुसैन ने कहा कि परंपरा के अनुसार पहलाम शाहजंगी मैदान में किया गया।